Allama Iqbal shayari in Hindi भावनाओं के सार को खूबसूरती से दर्शाती है। उनकी अल्लामा इक़बालहिंदी शायरी दिल को छू जाती है, जिससे पाठक भावनाओं की तीव्रता से जुड़ जाते हैं। चाहे वह अनकही भावनाओं के बारे में हो या भावुक बयानों के बारे में, 2 line Allama Iqbal shayari प्रेरणा और आराम का स्रोत बनी हुई है। ये शायरी अल्लामा इक़बाल छंद न केवल प्रेम व्यक्त करते हैं बल्कि दो आत्माओं के बीच भावनात्मक बंधन का भी जश्न मनाते हैं।
अफ़्लाक से आता है नालों का जवाब आख़िर
करते हैं ख़िताब आख़िर उठते हैं हिजाब आख़िर
अहवाल-ए-मोहब्बत में कुछ फ़र्क़ नहीं ऐसा
सोज़ ओ तब-ओ-ताब अव्वल सोज़ ओ तब-ओ-ताब आख़िर
मैं तुझ को बताता हूँ तक़दीर-ए-उमम क्या है
शमशीर-ओ-सिनाँ अव्वल ताऊस-ओ-रुबाब आख़िर
मय-ख़ाना-ए-यूरोप के दस्तूर निराले हैं
लाते हैं सुरूर अव्वल देते हैं शराब आख़िर
क्या दबदबा-ए-नादिर क्या शौकत-ए-तैमूरी
हो जाते हैं सब दफ़्तर ग़र्क़-ए-मय-ए-नाब आख़िर
ख़ल्वत की घड़ी गुज़री जल्वत की घड़ी आई
छुटने को है बिजली से आग़ोश-ए-सहाब आख़िर
था ज़ब्त बहुत मुश्किल इस सैल-ए-मआ'नी का
कह डाले क़लंदर ने असरार-ए-किताब आख़िर
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
तही ज़िंदगी से नहीं ये फ़ज़ाएँ
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं
क़नाअत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर
चमन और भी आशियाँ और भी हैं
अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं
इसी रोज़ ओ शब में उलझ कर न रह जा
कि तेरे ज़मान ओ मकाँ और भी हैं
गए दिन कि तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मिरे राज़-दाँ और भी हैं
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ
ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
ज़रा सा तो दिल हूँ मगर शोख़ इतना
वही लन-तरानी सुना चाहता हूँ
कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
दिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है
फिर इस में अजब क्या कि तू बेबाक नहीं है
है ज़ौक़-ए-तजल्ली भी इसी ख़ाक में पिन्हाँ
ग़ाफ़िल तू निरा साहिब-ए-इदराक नहीं है
वो आँख कि है सुर्मा-ए-अफ़रंग से रौशन
पुरकार ओ सुख़न-साज़ है नमनाक नहीं है
क्या सूफ़ी ओ मुल्ला को ख़बर मेरे जुनूँ की
उन का सर-ए-दामन भी अभी चाक नहीं है
कब तक रहे महकूमी-ए-अंजुम में मिरी ख़ाक
या मैं नहीं या गर्दिश-ए-अफ़्लाक नहीं है
बिजली हूँ नज़र कोह ओ बयाबाँ पे है मेरी
मेरे लिए शायाँ ख़स-ओ-ख़ाशाक नहीं है
आलम है फ़क़त मोमिन-ए-जाँबाज़ की मीरास
मोमिन नहीं जो साहिब-ए-लौलाक नहीं है
न तू ज़मीं के लिए है न आसमाँ के लिए
जहाँ है तेरे लिए तू नहीं जहाँ के लिए
ये अक़्ल ओ दिल हैं शरर शोला-ए-मोहब्बत के
वो ख़ार-ओ-ख़स के लिए है ये नीस्ताँ के लिए
मक़ाम-ए-परवरिश-ए-आह-ओ-लाला है ये चमन
न सैर-ए-गुल के लिए है न आशियाँ के लिए
रहेगा रावी ओ नील ओ फ़ुरात में कब तक
तिरा सफ़ीना कि है बहर-ए-बे-कराँ के लिए
निशान-ए-राह दिखाते थे जो सितारों को
तरस गए हैं किसी मर्द-ए-राह-दाँ के लिए
निगह बुलंद सुख़न दिल-नवाज़ जाँ पुर-सोज़
यही है रख़्त-ए-सफ़र मीर-ए-कारवाँ के लिए
ज़रा सी बात थी अंदेशा-ए-अजम ने उसे
बढ़ा दिया है फ़क़त ज़ेब-ए-दास्ताँ के लिए
मिरे गुलू में है इक नग़्मा जिब्राईल-आशोब
संभाल कर जिसे रक्खा है ला-मकाँ के लिए
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
खुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही
'अत्तार' हो 'रूमी' हो 'राज़ी' हो 'ग़ज़ाली' हो
कुछ हाथ नहीं आता बे-आह-ए-सहर-गाही
नौमीद न हो इन से ऐ रहबर-ए-फ़रज़ाना
कम-कोश तो हैं लेकिन बे-ज़ौक़ नहीं राही
ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी
जिस रिज़्क़ से आती हो पर्वाज़ में कोताही
दारा ओ सिकंदर से वो मर्द-ए-फ़क़ीर औला
हो जिस की फ़क़ीरी में बू-ए-असदुल-लाही
आईन-ए-जवाँ-मर्दां हक़-गोई ओ बे-बाकी
अल्लाह के शेरों को आती नहीं रूबाही
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
होश ओ ख़िरद शिकार कर क़ल्ब ओ नज़र शिकार कर
इश्क़ भी हो हिजाब में हुस्न भी हो हिजाब में
या तो ख़ुद आश्कार हो या मुझे आश्कार कर
तू है मुहीत-ए-बे-कराँ मैं हूँ ज़रा सी आबजू
या मुझे हम-कनार कर या मुझे बे-कनार कर
मैं हूँ सदफ़ तो तेरे हाथ मेरे गुहर की आबरू
मैं हूँ ख़ज़फ़ तो तू मुझे गौहर-ए-शाहवार कर
नग़्मा-ए-नौ-बहार अगर मेरे नसीब में न हो
उस दम-ए-नीम-सोज़ को ताइरक-ए-बहार कर
बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर
रोज़-ए-हिसाब जब मिरा पेश हो दफ़्तर-ए-अमल
आप भी शर्मसार हो मुझ को भी शर्मसार कर
निगाह-ए-फ़क़्र में शान-ए-सिकंदरी क्या है
ख़िराज की जो गदा हो वो क़ैसरी क्या है
बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदी
मुझे बता तो सही और काफ़िरी क्या है
फ़लक ने उन को अता की है ख़्वाजगी कि जिन्हें
ख़बर नहीं रविश-ए-बंदा-परवरी क्या है
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है
इसी ख़ता से इताब-ए-मुलूक है मुझ पर
कि जानता हूँ मआल-ए-सिकंदरी क्या है
किसे नहीं है तमन्ना-ए-सरवरी लेकिन
ख़ुदी की मौत हो जिस में वो सरवरी क्या है
ख़ुश आ गई है जहाँ को क़लंदरी मेरी
वगर्ना शे'र मिरा क्या है शाइ'री क्या है
कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में
तरब-आशना-ए-ख़रोश हो तो नवा है महरम-ए-गोश हो
वो सरोद क्या कि छुपा हुआ हो सुकूत-ए-पर्दा-ए-साज़ में
तू बचा बचा के न रख इसे तिरा आइना है वो आइना
कि शिकस्ता हो तो अज़ीज़-तर है निगाह-ए-आइना-साज़ में
दम-ए-तौफ़ किरमक-ए-शम्अ ने ये कहा कि वो असर-ए-कुहन
न तिरी हिकायत-ए-सोज़ में न मिरी हदीस-ए-गुदाज़ में
न कहीं जहाँ में अमाँ मिली जो अमाँ मिली तो कहाँ मिली
मिरे जुर्म-ए-ख़ाना-ख़राब को तिरे अफ़्व-ए-बंदा-नवाज़ में
न वो इश्क़ में रहीं गर्मियाँ न वो हुस्न में रहीं शोख़ियाँ
न वो ग़ज़नवी में तड़प रही न वो ख़म है ज़ुल्फ़-ए-अयाज़ मैं
जो मैं सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा
तिरा दिल तो है सनम-आश्ना तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में
मजनूँ ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे
नज़्ज़ारे की हवस हो तो लैला भी छोड़ दे
वाइ'ज़ कमाल-ए-तर्क से मिलती है याँ मुराद
दुनिया जो छोड़ दी है तो उक़्बा भी छोड़ दे
तक़लीद की रविश से तो बेहतर है ख़ुद-कुशी
रस्ता भी ढूँड ख़िज़्र का सौदा भी छोड़ दे
मानिंद-ए-ख़ामा तेरी ज़बाँ पर है हर्फ़-ए-ग़ैर
बेगाना शय पे नाज़िश-ए-बेजा भी छोड़ दे
लुत्फ़-ए-कलाम क्या जो न हो दिल में दर्द-ए-इश्क़
बिस्मिल नहीं है तू तो तड़पना भी छोड़ दे
शबनम की तरह फूलों पे रो और चमन से चल
इस बाग़ में क़याम का सौदा भी छोड़ दे
है आशिक़ी में रस्म अलग सब से बैठना
बुत-ख़ाना भी हरम भी कलीसा भी छोड़ दे
सौदा-गरी नहीं ये इबादत ख़ुदा की है
ऐ बे-ख़बर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे
अच्छा है दिल के साथ रहे पासबान-ए-अक़्ल
लेकिन कभी कभी इसे तन्हा भी छोड़ दे
जीना वो क्या जो हो नफ़स-ए-ग़ैर पर मदार
शोहरत की ज़िंदगी का भरोसा भी छोड़ दे
शोख़ी सी है सवाल-ए-मुकर्रर में ऐ कलीम
शर्त-ए-रज़ा ये है कि तक़ाज़ा भी छोड़ दे
वाइ'ज़ सुबूत लाए जो मय के जवाज़ में
'इक़बाल' को ये ज़िद है कि पीना भी छोड़ दे
अल्लामा इकबाल "पूरब के कवि" के रूप में प्रसिद्ध हैं और एक दार्शनिक, कवि और राजनीतिज्ञ थे। उनका जन्म 9 नवंबर, 1877 को ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान) के सियालकोट में हुआ था। उनके विचार कविता लेखन में जीवंत हो उठे, जिससे लाखों लोगों को आत्म-खोज, प्रेरणा और आध्यात्मिकता के माध्यम से खुद को बनाने की प्रेरणा मिली। इकबाल पाकिस्तान के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण शख्सियतों में से एक हैं और उन्होंने जिस तरह से अपनी दृष्टि व्यक्त की, वह आज भी हर जगह लोगों के बीच है।
हिंदी में अल्लामा इकबाल की शायरी ने हमेशा भारत में लाखों लोगों के दिलों में एक खास जगह बनाई है। उनके रचनात्मक विचारों को हिंदी में इतनी अच्छी तरह से समझाया गया है कि उन्हें बहुत लोकप्रियता मिली। उनकी कविता आत्म-जागरूकता, मानवीय भावना की आंतरिक शक्ति और लोगों को अपना उद्देश्य खोजने की आवश्यकता के बारे में बताती है। यही कारण है कि हिंदी में अल्लामा इकबाल की शायरी इन दिनों इतनी लोकप्रिय है, खासकर आत्म-प्रेरणा और आध्यात्मिकता के अपने संदेशों के कारण।
कई मशहूर शायर हैं और फिराक गोरखपुरी और जावेद अख्तर उनमें से एक हैं, जिन्होंने अल्लामा इकबाल की शायरी का हिंदी में अनुवाद किया है। अनुवादों ने इकबाल के विचारों के वास्तविक सार को बनाए रखा है लेकिन उन्हें भारतीय संस्कृति और समाज के अनुसार ढाला है। इस प्रकार, कई हिंदी कवियों और शायरों ने कवि इकबाल के काम से आत्मनिर्भरता, प्रेरणा और आध्यात्मिक उत्थान जैसे मुद्दों को कलमबद्ध किया है।
यह जीवन का गहरा दर्शन है अल्लामा इकबाल की शायरी हिंदी में जीवन की यात्रा के बारे में बताती है। उनकी कविताएँ संघर्षों और परीक्षणों के बीच उनकी कठिन यात्रा को दर्शाती हैं जो एक व्यक्ति की खुद को पूरा करने की यात्रा में आती हैं। सबसे प्रसिद्ध छंदों में से एक इस प्रकार है: "सफ़र है शर्त मुसाफ़िर नवाज़ बहुतेरे, हज़ारों मंज़िलें हैं एक रास्ता तेरी," जिसका अर्थ है कि एक यात्री को चिलचिलाती धूप का सामना करना पड़ता है और जीवन की यात्रा में आगे हज़ारों मंजिलें हैं। इकबाल लोगों को परिस्थिति के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। जीवन निरंतर प्रयासों में निहित है।
ज़िंदगी अल्लामा इकबाल की हिंदी में शायरी अक्सर जीवन को एक छोटी और अस्थायी अवधि के रूप में दर्शाती है, जो दुनिया को पूरी तरह से जीने और पीछे कुछ छोड़ जाने के लिए कहती है। आत्मा से निपटने वाले उनके काम ने इसे भारतीय चेतना से गहराई से जोड़ा है। उनकी वास्तव में प्रभावशाली और पाठक को आकर्षित करने वाली शायरी ने उन्हें विश्व स्तर पर एक अभूतपूर्व कवि बना दिया।