आप अपना ग़ुबार थे हम तो
(कवि : जौन एलिया)
आप अपना ग़ुबार थे हम तो
याद थे यादगार थे हम तो
पर्दगी हम से क्यूँ रखा पर्दा
तेरे ही पर्दा-दार थे हम तो
वक़्त की धूप में तुम्हारे लिए
शजर-ए-साया-दार थे हम तो
उड़े जाते हैं धूल के मानिंद
आँधियों पर सवार थे हम तो
हम ने क्यूँ ख़ुद पे ए'तिबार किया
सख़्त बे-ए'तिबार थे हम तो
शर्म है अपनी बार बारी की
बे-सबब बार बार थे हम तो
क्यूँ हमें कर दिया गया मजबूर
ख़ुद ही बे-इख़्तियार थे हम तो
तुम ने कैसे भुला दिया हम को
तुम से ही मुस्तआ'र थे हम तो
ख़ुश न आया हमें जिए जाना
लम्हे लम्हे पे बार थे हम तो
सह भी लेते हमारे ता'नों को
जान-ए-मन जाँ-निसार थे हम तो
ख़ुद को दौरान-ए-हाल में अपने
बे-तरह नागवार थे हम तो
तुम ने हम को भी कर दिया बरबाद
नादिर-ए-रोज़गार थे हम तो
हम को यारों ने याद भी न रखा
'जौन' यारों के यार थे हम तो