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आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए

(कवि : शहरयार)
आसमाँ कुछ भी नहीं अब तेरे करने के लिए
मैं ने सब तय्यारियाँ कर ली हैं मरने के लिए

इस बुलंदी ख़ौफ़ से आज़ाद हो उस ने कहा
चाँद से जब भी कहा नीचे उतरने के लिए

अब ज़मीं क्यूँ तेरे नक़्शे से नहीं हटती नज़र
रंग क्या कोई बचा है इस में भरने के लिए

ये जगह हैरत-सराए है कहाँ थी ये ख़बर
यूँही आ निकला था मैं तो सैर करने के लिए

कितना आसाँ लग रहा है मुझ को आगे का सफ़र
छोड़ आया पीछे परछाईं को डरने के लिए

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नवीनतम मौत हिंदी शायरी
द-ल-क-सुकून-रूह-क-आर-म-आ- दिल को सुकून रूह को आराम आ गया
मौत आ गई कि दोस्त का पैग़ाम आ गया
जब कोई ज़िक्र-ए-गर्दिश-ए-अय्याम आ गया
बे-इख़्तियार लब पे तिरा नाम आ गया
ग़म में भी है सुरूर वो हंगाम आ गया
शायद कि दौर-ए-बादा-ए-गुलफ़ाम आ गया
दीवानगी हो अक़्ल हो उम्मीद हो कि यास
अपना वही है वक़्त पे जो काम आ गया
दिल के मुआमलात में नासेह शिकस्त क्या
सौ बार हुस्न पर भी ये इल्ज़ाम आ गया
सय्याद शादमाँ है मगर ये तो सोच ले
मैं आ गया कि साया तह-ए-दाम आ गया
दिल को न पूछ मारका-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ में
क्या जानिए ग़रीब कहाँ काम आ गया
ये क्या मक़ाम-ए-इश्क़ है ज़ालिम कि इन दिनों
अक्सर तिरे बग़ैर भी आराम आ गया
अहबाब मुझ से क़त-ए-तअल्लुक़ करें 'जिगर'
अब आफ़्ताब-ए-ज़ीस्त लब-ए-बाम आ गया