अब के शिकस्त ओ मात से अगे भी सोचना
(कवि : )
अब के शिकस्त ओ मात से अगे भी सोचना
गम आशनाओ रात से अगले भी सोचना
अब वो रकीब जान है हम रंग दोस्तान
क्या रंग वादा से आगे भी सोचना
पत्थर नवाज हो के भी क्या मिल गया तुमने
क्या दरजा इल्तिफात से आगे भी सोच रहा है
मुमकिन नहीं के टूटे शनसाई का भरम
लेकिन चिंता मत करो, बहुत देर हो चुकी है
कर तो रहे हो हम से उन तीर-ओ-तब की बात
ये बात है तो बात से आगे भी सोचना
हम अजनबी नहीं थे हुए अजनबी से क्यूं
क्या वासफ बी सबत से आगे भी सोच रहा है?
उस पार दार याक़ीन का शायद ख़ले नक़ीब
कुछ घरफह हयात से अगले भी सोचना