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अफ़्लाक से आता है नालों का जवाब आख़िर

(कवि : अल्लामा इक़बाल)
अफ़्लाक से आता है नालों का जवाब आख़िर
करते हैं ख़िताब आख़िर उठते हैं हिजाब आख़िर

अहवाल-ए-मोहब्बत में कुछ फ़र्क़ नहीं ऐसा
सोज़ ओ तब-ओ-ताब अव्वल सोज़ ओ तब-ओ-ताब आख़िर

मैं तुझ को बताता हूँ तक़दीर-ए-उमम क्या है
शमशीर-ओ-सिनाँ अव्वल ताऊस-ओ-रुबाब आख़िर

मय-ख़ाना-ए-यूरोप के दस्तूर निराले हैं
लाते हैं सुरूर अव्वल देते हैं शराब आख़िर

क्या दबदबा-ए-नादिर क्या शौकत-ए-तैमूरी
हो जाते हैं सब दफ़्तर ग़र्क़-ए-मय-ए-नाब आख़िर

ख़ल्वत की घड़ी गुज़री जल्वत की घड़ी आई
छुटने को है बिजली से आग़ोश-ए-सहाब आख़िर

था ज़ब्त बहुत मुश्किल इस सैल-ए-मआ'नी का
कह डाले क़लंदर ने असरार-ए-किताब आख़िर
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