अक्स है आइना-ए-दहर में सूरत मेरी
(कवि : जलील मानिकपूरी)
अक्स है आइना-ए-दहर में सूरत मेरी
कुछ हक़ीक़त नहीं इतनी है हक़ीक़त मेरी
देखता मैं उसे क्यूँकर कि नक़ाब उठते ही
बन के दीवार खड़ी हो गई हैरत मेरी
रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को
मैं जो सोता हूँ तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी
सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है
चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी
आइने से उन्हें कुछ उन्स नहीं बात ये है
चाहते हैं कोई देखा करे सूरत मेरी
मैं ये समझूँ कोई माशूक़ मिरे हाथ आया
मेरे क़ाबू में जो आ जाए तबीअ'त मेरी
बू-ए-गेसू ने शगूफ़ा ये नया छोड़ा है
निकहत-ए-गुल से उलझती है तबीअ'त मेरी
उन से इज़हार-ए-मोहब्बत जो कोई करता है
दूर से उस को दिखा देते हैं तुर्बत मेरी
जाते जाते वो यही कर गए ताकीद 'जलील'
दिल में रखिएगा हिफ़ाज़त से मोहब्बत मेरी
कुछ हक़ीक़त नहीं इतनी है हक़ीक़त मेरी
देखता मैं उसे क्यूँकर कि नक़ाब उठते ही
बन के दीवार खड़ी हो गई हैरत मेरी
रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को
मैं जो सोता हूँ तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी
सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है
चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी
आइने से उन्हें कुछ उन्स नहीं बात ये है
चाहते हैं कोई देखा करे सूरत मेरी
मैं ये समझूँ कोई माशूक़ मिरे हाथ आया
मेरे क़ाबू में जो आ जाए तबीअ'त मेरी
बू-ए-गेसू ने शगूफ़ा ये नया छोड़ा है
निकहत-ए-गुल से उलझती है तबीअ'त मेरी
उन से इज़हार-ए-मोहब्बत जो कोई करता है
दूर से उस को दिखा देते हैं तुर्बत मेरी
जाते जाते वो यही कर गए ताकीद 'जलील'
दिल में रखिएगा हिफ़ाज़त से मोहब्बत मेरी
हिंदी शायरी श्रेणियाँ
नवीनतम का प्रस्ताव हिंदी शायरी
हाथ हाथों में न दे बात ही करता जाए हाथ हाथों में न दे बात ही करता जाए
है बहुत लम्बा सफ़र यूँ तो न डरता जाए
जी में ठानी है कि जीना है बहर-हाल मुझे
जिस को मरना है वो चुप-चाप ही मरता जाए
ख़ुद को मज़बूत बना रक्खे पहाड़ों की तरह
रेत का आदमी अंदर से बिखरता जाए
सुर्ख़ फूलों का नहीं ज़र्द उदासी का सही
रंग कुछ तो मिरी तस्वीर में भरता जाए
मुझ से नफ़रत है अगर उस को तो इज़हार करे
कब मैं कहता हूँ मुझे प्यार ही करता जाए
घर की दीवार को इतना भी तू ऊँचा न बना
तेरा हम-साया तिरे साए से डरता जाए
है बहुत लम्बा सफ़र यूँ तो न डरता जाए
जी में ठानी है कि जीना है बहर-हाल मुझे
जिस को मरना है वो चुप-चाप ही मरता जाए
ख़ुद को मज़बूत बना रक्खे पहाड़ों की तरह
रेत का आदमी अंदर से बिखरता जाए
सुर्ख़ फूलों का नहीं ज़र्द उदासी का सही
रंग कुछ तो मिरी तस्वीर में भरता जाए
मुझ से नफ़रत है अगर उस को तो इज़हार करे
कब मैं कहता हूँ मुझे प्यार ही करता जाए
घर की दीवार को इतना भी तू ऊँचा न बना
तेरा हम-साया तिरे साए से डरता जाए
अक्स है आइना-ए-दहर में सूरत मेरी अक्स है आइना-ए-दहर में सूरत मेरी
कुछ हक़ीक़त नहीं इतनी है हक़ीक़त मेरी
देखता मैं उसे क्यूँकर कि नक़ाब उठते ही
बन के दीवार खड़ी हो गई हैरत मेरी
रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को
मैं जो सोता हूँ तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी
सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है
चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी
आइने से उन्हें कुछ उन्स नहीं बात ये है
चाहते हैं कोई देखा करे सूरत मेरी
मैं ये समझूँ कोई माशूक़ मिरे हाथ आया
मेरे क़ाबू में जो आ जाए तबीअ'त मेरी
बू-ए-गेसू ने शगूफ़ा ये नया छोड़ा है
निकहत-ए-गुल से उलझती है तबीअ'त मेरी
उन से इज़हार-ए-मोहब्बत जो कोई करता है
दूर से उस को दिखा देते हैं तुर्बत मेरी
जाते जाते वो यही कर गए ताकीद 'जलील'
दिल में रखिएगा हिफ़ाज़त से मोहब्बत मेरी
कुछ हक़ीक़त नहीं इतनी है हक़ीक़त मेरी
देखता मैं उसे क्यूँकर कि नक़ाब उठते ही
बन के दीवार खड़ी हो गई हैरत मेरी
रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को
मैं जो सोता हूँ तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी
सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है
चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी
आइने से उन्हें कुछ उन्स नहीं बात ये है
चाहते हैं कोई देखा करे सूरत मेरी
मैं ये समझूँ कोई माशूक़ मिरे हाथ आया
मेरे क़ाबू में जो आ जाए तबीअ'त मेरी
बू-ए-गेसू ने शगूफ़ा ये नया छोड़ा है
निकहत-ए-गुल से उलझती है तबीअ'त मेरी
उन से इज़हार-ए-मोहब्बत जो कोई करता है
दूर से उस को दिखा देते हैं तुर्बत मेरी
जाते जाते वो यही कर गए ताकीद 'जलील'
दिल में रखिएगा हिफ़ाज़त से मोहब्बत मेरी
इस शर्त पर मैं प्यार से खेलूंगा इस शर्त पर मैं प्यार से खेलूंगा
यदि आप जीतते हैं, तो आपके पैर, यदि आप हारते हैं, तो आपका पेय
मैं हर पल तुम्हारा ध्यान रखूंगा, बस
अगर मैं उठता हूं, तो भी मैं उठता हूं, यह अभी भी तुम्हारा है
मैं अपने साथी के बारे में कुछ करूंगा
भले ही आपकी आँखें खुली हों, भले ही आपकी आँखें खुली हों
मुझे तुम्हारी हर सांस में ऐसी व्याख्या मिलेगी
अगर मैं हंसता हूं, तब भी मैं आपसे नाराज रहूंगा
मैं तुम्हें कुछ इस तरह से दूंगा, जहान जहाँ
अगर मैं जिंदा हूं, भले ही मैं मर जाऊं, यह अभी भी तुम्हारा है
यदि आप जीतते हैं, तो आपके पैर, यदि आप हारते हैं, तो आपका पेय
मैं हर पल तुम्हारा ध्यान रखूंगा, बस
अगर मैं उठता हूं, तो भी मैं उठता हूं, यह अभी भी तुम्हारा है
मैं अपने साथी के बारे में कुछ करूंगा
भले ही आपकी आँखें खुली हों, भले ही आपकी आँखें खुली हों
मुझे तुम्हारी हर सांस में ऐसी व्याख्या मिलेगी
अगर मैं हंसता हूं, तब भी मैं आपसे नाराज रहूंगा
मैं तुम्हें कुछ इस तरह से दूंगा, जहान जहाँ
अगर मैं जिंदा हूं, भले ही मैं मर जाऊं, यह अभी भी तुम्हारा है