अपने बाबा के लिए
(कवि : )
सो गए खाक में क्यूं मेरे सयानय बाबा
तुझ को मरहूम कहूं दिल नहीं मनय बाबा
मैं जो बेमार पारों मुज़ को तसालीई दैनय
आए गा कोन अभि मेरे सरनेय बाबा
वो भी दीन थाय के थामा कर मारे हथों में क़लम
टू निकला था अकेला ही कामनाय बाबा
अब उदासी का तमाशा है मेरी चोखत पर
घर में रोनके थी फकत तैराय बहानय बाबा