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बात मेरी कभी सुनी ही नहीं

(कवि : दाग़ देहलवी)
बात मेरी कभी सुनी ही नहीं
जानते वो बुरी भली ही नहीं

दिल-लगी उन की दिल-लगी ही नहीं
रंज भी है फ़क़त हँसी ही नहीं

लुत्फ़-ए-मय तुझ से क्या कहूँ ज़ाहिद
हाए कम-बख़्त तू ने पी ही नहीं

उड़ गई यूँ वफ़ा ज़माने से

कभी गोया किसी में थी ही नहीं

जान क्या दूँ कि जानता हूँ मैं
तुम ने ये चीज़ ले के दी ही नहीं

हम तो दुश्मन को दोस्त कर लेते
पर करें क्या तिरी ख़ुशी ही नहीं

हम तिरी आरज़ू पे जीते हैं
ये नहीं है तो ज़िंदगी ही नहीं

दिल-लगी दिल-लगी नहीं नासेह
तेरे दिल को अभी लगी ही नहीं

'दाग़' क्यूँ तुम को बेवफ़ा कहता
वो शिकायत का आदमी ही नहीं

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नवीनतम बेवफा हिंदी शायरी
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
आज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की
वर्ना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश में
या तो टूट कर रोया या ग़ज़ल-सराई की
तज दिया था कल जिन को हम ने तेरी चाहत में
आज उन से मजबूरन ताज़ा आश्नाई की
हो चला था जब मुझ को इख़्तिलाफ़ अपने से
तू ने किस घड़ी ज़ालिम मेरी हम-नवाई की
तर्क कर चुके क़ासिद कू-ए-ना-मुरादाँ को
कौन अब ख़बर लावे शहर-ए-आश्नाई की
तंज़ ओ ता'ना ओ तोहमत सब हुनर हैं नासेह के
आप से कोई पूछे हम ने क्या बुराई की
फिर क़फ़स में शोर उट्ठा क़ैदियों का और सय्याद
देखना उड़ा देगा फिर ख़बर रिहाई की
दुख हुआ जब उस दर पर कल 'फ़राज़' को देखा
लाख ऐब थे उस में ख़ू न थी गदाई की