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बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैं

(कवि : इफ़्तिख़ार आरिफ़)
बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैं
और कोई दूसरा इस ख़्वाब को पढ़ ले तो बुरा मानती हैं

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