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चुल्लू-भर पानी में जाके डूब मर

(कवि : मोहम्मद कमाल अज़हर)
चुल्लू-भर पानी में जाके डूब मर
कुछ न कुछ ग़ैरत ही खा के डूब मर

साफ़ पानी तो यहाँ मिलता नहीं
अब किसी नाले में जाके डूब मर

शाइरी तो तुझ से हो सकती नहीं
दूसरों के शेर गा के डूब मर

बहती गँगा से है तेरी दोस्ती
मैं तो कहता हूँ नहा के डूब मर

ये भी है कार-ए-जवाँ-मर्दां मियाँ
खिल-खिला के हँस-हँसा के डूब मर

उम्र-भर तू ने नहीं खाया हलाल
ओ-निकम्मे ज़हर खा के डूब मर

ये बुराई एक ही दम ख़त्म हो
साथ अपने आश्ना के डूब मर

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