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गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में

(कवि : BHARTENDU HARISHCHANDRA)
गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में
बुझे दिल की लगी भी तो ऐ मेरे यार होली में

नहीं ये है गुलाल-ए-सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे
ये आशिक़ की है उमड़ी आह-ए-आतिश-बार होली में

गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जान-ए-मन त्यौहार होली में

'रसा' गर जाम-ए-मय ग़ैरों को देते हो तो मुझ को भी
नशीली आँख दिखला कर करो सरशार होली में

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साक़ी है न मय है न दफ़-ओ-चंग है होली साक़ी है न मय है न दफ़-ओ-चंग है होली
क्या हाल है इमसाल ये क्या रंग है होली
आई है जो फ़ुर्क़त में मिरा ख़ून करेगी
ये भी तिरे आने का कोई ढंग है होली
हम ख़ाक उड़ाते हैं धोलेंडी है यहाँ पर
हम तक नहीं आती कभी क्या लंग है होली
सौ बार जलाता हूँ मैं इक आह से दम में
आ कर मिरे वीराने में क्या तंग है होली
निकला मह-ए-नख़शब कि गिरा चाह में यूसुफ़
या हौज़ के अंदर मह-ए-गुल-रंग है होली
पिचकारी अगर ख़ामा है तो रंग सियाही
रंगीनी-ए-मज़मूँ से मिरे दंग है होली
हर बुत एवज़-ए-क़ुमक़ुमा दिल माँग रहा है
इस साल की वल्लाह कि बे-रंग है होली
ऐ 'मेहर' तिरे गिर्द हैं मह-रू किए तस्वीर
फ़ानूस-ए-ख़याली है कि अर्ज़ंग है होली