है अब तो हसीनाओं का हल्क़ा मिरे आगे
(कवि : नज़र बर्नी)
है अब तो हसीनाओं का हल्क़ा मिरे आगे
सलमा मिरे पीछे है ज़ुलेख़ा मिरे आगे
अब बच के कहाँ जाए हर इक सम्त है दीवार
बीवी मिरे पीछे है तो बच्चा मिरे आगे
बे-पर्दा वो कॉलेज में तो फिरती हैं बराबर
ओढ़ा मिरी महबूब ने बुर्क़ा मिरे आगे
मैं अब के इलेक्शन में गँवा बैठा ज़मानत
डूबा मिरी क़िस्मत का सितारा मिरे आगे
बढ़ने की तमन्ना हो तो मुझ जैसे बनो तुम
कहने लगा साहब का ये चमचा मिरे आगे
दस बच्चों के अब्बा हैं मगर है यही ख़्वाहिश
हर वक़्त ही बैठी रहे लैला मिरे आगे
अब वो भी तो कहने लगे मुझ को 'नज़र' अंकल
निकला है मुरादों का जनाज़ा मिरे आगे