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हम ऐसे अहल-ए-नज़र को सुबूत-ए-हक़ के लिए

(कवि : जोश मलीहाबादी)
हम ऐसे अहल-ए-नज़र को सुबूत-ए-हक़ के लिए
अगर रसूल न होते तो सुब्ह काफ़ी थी

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