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इक त्रा हिजर दाईमी है मुझे

(कवि : Tehzeeb Hafi)
इक त्रा हिजर दाईमी है मुझे
वर्ना हर चीज़ अर्ज़ी है मुझे

ऐक साया मारे तकूब में
ऐक आवाज़ ढूंढती है मुझे

मेरी आंखें पे दो मुकद्दस हाथी
ये अंधेरा भी रोशनी है मुझे

में सुखन में होन इस जग के जहान
सांस लेना भी शायरी है मुझे

परिंदों से बोलना सीख में
जोड़ी से खामशी मिली है मुझे

में उसे कब का भूल भूल चूका
जिंदगी है के रो रही है मुझे

में के कागज की एक कश्ती माननीय
पहली बरिश ही आखिरी है मुझे

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