इस शर्त पर मैं प्यार से खेलूंगा

(कवि : arveen Shakir)
इस शर्त पर मैं प्यार से खेलूंगा
यदि आप जीतते हैं, तो आपके पैर, यदि आप हारते हैं, तो आपका पेय

मैं हर पल तुम्हारा ध्यान रखूंगा, बस
अगर मैं उठता हूं, तो भी मैं उठता हूं, यह अभी भी तुम्हारा है

मैं अपने साथी के बारे में कुछ करूंगा
भले ही आपकी आँखें खुली हों, भले ही आपकी आँखें खुली हों

मुझे तुम्हारी हर सांस में ऐसी व्याख्या मिलेगी
अगर मैं हंसता हूं, तब भी मैं आपसे नाराज रहूंगा

मैं तुम्हें कुछ इस तरह से दूंगा, जहान जहाँ
अगर मैं जिंदा हूं, भले ही मैं मर जाऊं, यह अभी भी तुम्हारा है

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अक्स है आइना-ए-दहर में सूरत मेरी अक्स है आइना-ए-दहर में सूरत मेरी
कुछ हक़ीक़त नहीं इतनी है हक़ीक़त मेरी
देखता मैं उसे क्यूँकर कि नक़ाब उठते ही
बन के दीवार खड़ी हो गई हैरत मेरी
रोज़ वो ख़्वाब में आते हैं गले मिलने को
मैं जो सोता हूँ तो जाग उठती है क़िस्मत मेरी
सच है एहसान का भी बोझ बहुत होता है
चार फूलों से दबी जाती है तुर्बत मेरी
आइने से उन्हें कुछ उन्स नहीं बात ये है
चाहते हैं कोई देखा करे सूरत मेरी
मैं ये समझूँ कोई माशूक़ मिरे हाथ आया
मेरे क़ाबू में जो आ जाए तबीअ'त मेरी
बू-ए-गेसू ने शगूफ़ा ये नया छोड़ा है
निकहत-ए-गुल से उलझती है तबीअ'त मेरी
उन से इज़हार-ए-मोहब्बत जो कोई करता है
दूर से उस को दिखा देते हैं तुर्बत मेरी
जाते जाते वो यही कर गए ताकीद 'जलील'
दिल में रखिएगा हिफ़ाज़त से मोहब्बत मेरी