जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
(कवि : जावेद अख्तर)
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता
ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो
कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता
ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो
कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता
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जीना मुश्किल है कि आसान ज़रा देख तो लो जीना मुश्किल है कि आसान ज़रा देख तो लो
लोग लगते हैं परेशान ज़रा देख तो लो
फिर मुक़र्रिर कोई सरगर्म सर-ए-मिंबर है
किस के है क़त्ल का सामान ज़रा देख तो लो
ये नया शहर तो है ख़ूब बसाया तुम ने
क्यूँ पुराना हुआ वीरान ज़रा देख तो लो
इन चराग़ों के तले ऐसे अँधेरे क्यूँ है
तुम भी रह जाओगे हैरान ज़रा देख तो लो
तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद
निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो
ये सताइश की तमन्ना ये सिले की परवाह
कहाँ लाए हैं ये अरमान ज़रा देख तो लो
लोग लगते हैं परेशान ज़रा देख तो लो
फिर मुक़र्रिर कोई सरगर्म सर-ए-मिंबर है
किस के है क़त्ल का सामान ज़रा देख तो लो
ये नया शहर तो है ख़ूब बसाया तुम ने
क्यूँ पुराना हुआ वीरान ज़रा देख तो लो
इन चराग़ों के तले ऐसे अँधेरे क्यूँ है
तुम भी रह जाओगे हैरान ज़रा देख तो लो
तुम ये कहते हो कि मैं ग़ैर हूँ फिर भी शायद
निकल आए कोई पहचान ज़रा देख तो लो
ये सताइश की तमन्ना ये सिले की परवाह
कहाँ लाए हैं ये अरमान ज़रा देख तो लो
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता
ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो
कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता
ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो
कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता
याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा याद उसे भी एक अधूरा अफ़्साना तो होगा
कल रस्ते में उस ने हम को पहचाना तो होगा
डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा
कुछ बातों के मतलब हैं और कुछ मतलब की बातें
जो ये फ़र्क़ समझ लेगा वो दीवाना तो होगा
दिल की बातें नहीं है तो दिलचस्प ही कुछ बातें हों
ज़िंदा रहना है तो दिल को बहलाना तो होगा
जीत के भी वो शर्मिंदा है हार के भी हम नाज़ाँ
कम से कम वो दिल ही दिल में ये माना तो होगा
कल रस्ते में उस ने हम को पहचाना तो होगा
डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा
कुछ बातों के मतलब हैं और कुछ मतलब की बातें
जो ये फ़र्क़ समझ लेगा वो दीवाना तो होगा
दिल की बातें नहीं है तो दिलचस्प ही कुछ बातें हों
ज़िंदा रहना है तो दिल को बहलाना तो होगा
जीत के भी वो शर्मिंदा है हार के भी हम नाज़ाँ
कम से कम वो दिल ही दिल में ये माना तो होगा
जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता
ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो
कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता
मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती
ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता
ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो
कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता