कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा
(कवि : MAJROOH SULTANPURI)
कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा
शाम तन्हाई की है आएगी मंज़िल कैसे
जो मुझे राह दिखा दे वही तारा न रहा
ऐ नज़ारो न हँसो मिल न सकूँगा तुम से
तुम मिरे हो न सके मैं भी तुम्हारा न रहा
क्या बताऊँ मैं कहाँ यूँही चला जाता हूँ
जो मुझे फिर से बुला ले वो इशारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा
शाम तन्हाई की है आएगी मंज़िल कैसे
जो मुझे राह दिखा दे वही तारा न रहा
ऐ नज़ारो न हँसो मिल न सकूँगा तुम से
तुम मिरे हो न सके मैं भी तुम्हारा न रहा
क्या बताऊँ मैं कहाँ यूँही चला जाता हूँ
जो मुझे फिर से बुला ले वो इशारा न रहा
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हुई इक ख़्वाब से शादी मिरी तन्हाई की हुई इक ख़्वाब से शादी मिरी तन्हाई की
पहली बेटी है उदासी मिरी तन्हाई की
अभी मा'लूम नहीं कितने हैं ज़ाती अस्बाब
कितनी वजहें हैं समाजी मिरी तन्हाई की
जा के देखा तो खुला रौनक़-ए-बाज़ार का राज़
एक इक चीज़ बनी थी मिरी तन्हाई की
शहर-दर-शहर जो ये अंजुमनें हैं आबाद
तर्बियत-गाहें हैं सारी मिरी तन्हाई की
सिर्फ़ आईना-ए-आग़ोश-ए-मोहब्बत में मिली
एक तन्हाई जवाबी मिरी तन्हाई की
साफ़ है चेहरा-ए-क़ातिल मिरी आँखों में मगर
मो'तबर कब है गवाही मिरी तन्हाई की
हासिल-ए-वस्ल सिफ़र हिज्र का हासिल भी सिफ़र
जाने कैसी है रियाज़ी मिरी तन्हाई की
किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती
है यही एक ख़राबी मिरी तन्हाई की
मैं जो यूँ फिरता हूँ मय-ख़ानों में बुतख़ानों में
है यही रोज़ा नमाज़ी मिरी तन्हाई की
'फ़रहत-एहसास' वो हम-ज़ाद है मेरा जिस ने
शहर में धूम मचा दी मिरी तन्हाई की
पहली बेटी है उदासी मिरी तन्हाई की
अभी मा'लूम नहीं कितने हैं ज़ाती अस्बाब
कितनी वजहें हैं समाजी मिरी तन्हाई की
जा के देखा तो खुला रौनक़-ए-बाज़ार का राज़
एक इक चीज़ बनी थी मिरी तन्हाई की
शहर-दर-शहर जो ये अंजुमनें हैं आबाद
तर्बियत-गाहें हैं सारी मिरी तन्हाई की
सिर्फ़ आईना-ए-आग़ोश-ए-मोहब्बत में मिली
एक तन्हाई जवाबी मिरी तन्हाई की
साफ़ है चेहरा-ए-क़ातिल मिरी आँखों में मगर
मो'तबर कब है गवाही मिरी तन्हाई की
हासिल-ए-वस्ल सिफ़र हिज्र का हासिल भी सिफ़र
जाने कैसी है रियाज़ी मिरी तन्हाई की
किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती
है यही एक ख़राबी मिरी तन्हाई की
मैं जो यूँ फिरता हूँ मय-ख़ानों में बुतख़ानों में
है यही रोज़ा नमाज़ी मिरी तन्हाई की
'फ़रहत-एहसास' वो हम-ज़ाद है मेरा जिस ने
शहर में धूम मचा दी मिरी तन्हाई की
उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे
रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा
प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली
जिस को पीछे कहीं छोड़ आए वो दरिया होगा
मिरे बारे में कोई राय तो होगी उस की
उस ने मुझ को भी कभी तोड़ के देखा होगा
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे
रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा
प्यास जिस नहर से टकराई वो बंजर निकली
जिस को पीछे कहीं छोड़ आए वो दरिया होगा
मिरे बारे में कोई राय तो होगी उस की
उस ने मुझ को भी कभी तोड़ के देखा होगा
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
अपने साए से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा
रात भर बातें करते हैं तारे
रात काटे कोई किधर तन्हा
डूबने वाले पार जा उतरे
नक़्श-ए-पा अपने छोड़ कर तन्हा
दिन गुज़रता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तन्हा
हम ने दरवाज़े तक तो देखा था
फिर न जाने गए किधर तन्हा
क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा
अपने साए से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा
रात भर बातें करते हैं तारे
रात काटे कोई किधर तन्हा
डूबने वाले पार जा उतरे
नक़्श-ए-पा अपने छोड़ कर तन्हा
दिन गुज़रता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तन्हा
हम ने दरवाज़े तक तो देखा था
फिर न जाने गए किधर तन्हा
बैठे बैठे कैसा दिल घबरा जाता है बैठे बैठे कैसा दिल घबरा जाता है
जाने वालों का जाना याद आ जाता है
बात-चीत में जिस की रवानी मसल हुई
एक नाम लेते में कुछ रुक सा जाता है
हँसती-बस्ती राहों का ख़ुश-बाश मुसाफ़िर
रोज़ी की भट्टी का ईंधन बन जाता है
दफ़्तर मंसब दोनों ज़ेहन को खा लेते हैं
घर वालों की क़िस्मत में तन रह जाता है
अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है
कोई आ जाए तो वक़्त गुज़र जाता है
जाने वालों का जाना याद आ जाता है
बात-चीत में जिस की रवानी मसल हुई
एक नाम लेते में कुछ रुक सा जाता है
हँसती-बस्ती राहों का ख़ुश-बाश मुसाफ़िर
रोज़ी की भट्टी का ईंधन बन जाता है
दफ़्तर मंसब दोनों ज़ेहन को खा लेते हैं
घर वालों की क़िस्मत में तन रह जाता है
अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है
कोई आ जाए तो वक़्त गुज़र जाता है
पूरा दुख और आधा चाँद पूरा दुख और आधा चाँद
हिज्र की शब और ऐसा चाँद
दिन में वहशत बहल गई
रात हुई और निकला चाँद
किस मक़्तल से गुज़रा होगा
इतना सहमा सहमा चाँद
यादों की आबाद गली में
घूम रहा है तन्हा चाँद
मेरी करवट पर जाग उठ्ठे
नींद का कितना कच्चा चाँद
मेरे मुँह को किस हैरत से
देख रहा है भोला चाँद
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
आँसू रोके नूर नहाए
दिल दरिया तन सहरा चाँद
इतने रौशन चेहरे पर भी
सूरज का है साया चाँद
जब पानी में चेहरा देखा
तू ने किस को सोचा चाँद
बरगद की इक शाख़ हटा कर
जाने किस को झाँका चाँद
बादल के रेशम झूले में
भोर समय तक सोया चाँद
रात के शाने पर सर रक्खे
देख रहा है सपना चाँद
सूखे पत्तों के झुरमुट पर
शबनम थी या नन्हा चाँद
हाथ हिला कर रुख़्सत होगा
उस की सूरत हिज्र का चाँद
सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क़ में सच्चा चाँद
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद
हिज्र की शब और ऐसा चाँद
दिन में वहशत बहल गई
रात हुई और निकला चाँद
किस मक़्तल से गुज़रा होगा
इतना सहमा सहमा चाँद
यादों की आबाद गली में
घूम रहा है तन्हा चाँद
मेरी करवट पर जाग उठ्ठे
नींद का कितना कच्चा चाँद
मेरे मुँह को किस हैरत से
देख रहा है भोला चाँद
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
आँसू रोके नूर नहाए
दिल दरिया तन सहरा चाँद
इतने रौशन चेहरे पर भी
सूरज का है साया चाँद
जब पानी में चेहरा देखा
तू ने किस को सोचा चाँद
बरगद की इक शाख़ हटा कर
जाने किस को झाँका चाँद
बादल के रेशम झूले में
भोर समय तक सोया चाँद
रात के शाने पर सर रक्खे
देख रहा है सपना चाँद
सूखे पत्तों के झुरमुट पर
शबनम थी या नन्हा चाँद
हाथ हिला कर रुख़्सत होगा
उस की सूरत हिज्र का चाँद
सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क़ में सच्चा चाँद
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद
कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा
शाम तन्हाई की है आएगी मंज़िल कैसे
जो मुझे राह दिखा दे वही तारा न रहा
ऐ नज़ारो न हँसो मिल न सकूँगा तुम से
तुम मिरे हो न सके मैं भी तुम्हारा न रहा
क्या बताऊँ मैं कहाँ यूँही चला जाता हूँ
जो मुझे फिर से बुला ले वो इशारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा
शाम तन्हाई की है आएगी मंज़िल कैसे
जो मुझे राह दिखा दे वही तारा न रहा
ऐ नज़ारो न हँसो मिल न सकूँगा तुम से
तुम मिरे हो न सके मैं भी तुम्हारा न रहा
क्या बताऊँ मैं कहाँ यूँही चला जाता हूँ
जो मुझे फिर से बुला ले वो इशारा न रहा