कोई परी हो अगर हम-कनार होली में
(कवि : कल्ब-ए-हुसैन नादिर)
कोई परी हो अगर हम-कनार होली में
तो अब की साल हो दूनी बहार होली में
किया है वा'दा तो फिर बज़्म-ए-रक़्स में आना
न कीजियो मुझे तुम शर्मसार होली में
सफ़ेद पैरहन अब तो उतार दे अल्लाह
बसंती कपड़े हों ऐ गुल-एज़ार होली में
हमारे घर में उतारेंगे राह अगर भूले
हैं मस्त डोली के उन के कहार होली में
मुझे जो क़ुमक़ुमा मारा तो कर दिया बिस्मिल
अजीब रंग से खेले शिकार होली में
ये रंग पाश हुए हैं वो आज ऐ 'नादिर'
है फ़र्श-ए-बज़्म-ए-तरब लाला-ज़ार होली में