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कोई शिकवा तो ज़ेर-ए-लब होगा

(कवि : ए जी जोश)
कोई शिकवा तो ज़ेर-ए-लब होगा
कुछ ख़मोशी का भी सबब होगा

मैं भी हूँ बज़्म में रक़ीब भी है
आख़िरी फ़ैसला तो अब होगा

आएँ मय-ख़ाने में कभी वाइ'ज़
हूर भी होगी और सब होगा

बोल ऐ मेरे दिल की तारीकी
तेरा सूरज तुलूअ' कब होगा

सुनता होगा सदाएँ उस दिल की
शाम-ए-तन्हाई में वो जब होगा

कब छटेंगी ये बदलियाँ ग़म की
साफ़ मतला ये 'जोश' कब होगा

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