मैं जो रोता हूँ तो कहते हो कि ऐसा न करो
(कवि : शहज़ाद अहमद)
मैं जो रोता हूँ तो कहते हो कि ऐसा न करो
तुम अगर मेरी जगह हो तो भला क्या न करो
अब तो ऐ दिल हवस-ए-साग़र-ओ-मीना न करो
छोड़ भी दो ये तक़ाज़ा ये तक़ाज़ा न करो
दिल पे ऐ दोस्त क़यामत सी गुज़र जाती है
तुम निगाह-ए-ग़लत-अंदाज़ से देखा न करो
फिर भी आँखें उन्हें हर बात बता देती हैं
दिल तो कहता है किसी बात का चर्चा न करो
अब मिरा दर्द मिरी जान हुआ जाता है
ऐ मिरे चारागरो अब मुझे अच्छा न करो
ये सर-ए-बज़्म मिरी सम्त इशारे कैसे
मैं तमाशा तो नहीं मेरा तमाशा न करो
मिल ही जाती है कभी यास में तस्कीन मुझे
ऐ उमीदो मुझे ऐसे में तो छेड़ा न करो
उस ने 'शहज़ाद' तिरी बात को ठुकरा ही दिया
मैं न कहता था कि इज़हार-ए-तमन्ना न करो