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मरहला रात का जब आएगा

(कवि : क़तील शिफ़ाई)
मरहला रात का जब आएगा
जिस्म साए को तरस जाएगा

चल पड़ी रस्म जो कज-फ़हमी की
बात क्या फिर कोई कर पाएगा

सच से कतराए अगर लोग यहाँ
लफ़्ज़ मफ़्हूम से कतराएगा

ए'तिबार उस का हमेशा करना
वो तो झूटी भी क़सम खाएगा

तू न होगी तो फिर ऐ शाम-ए-फ़िराक़
कौन आ कर हमें बहलाएगा

हम उसे याद बहुत आएँगे
जब उसे भी कोई ठुकराएगा

काएनात उस की मिरी ज़ात में है
मुझ को खो कर वो किसे पाएगा

न रहे जब वो भले दिन भी 'क़तील'
ये ज़माना भी गुज़र जाएगा

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नवीनतम बेवफा हिंदी शायरी
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
आज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की
वर्ना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश में
या तो टूट कर रोया या ग़ज़ल-सराई की
तज दिया था कल जिन को हम ने तेरी चाहत में
आज उन से मजबूरन ताज़ा आश्नाई की
हो चला था जब मुझ को इख़्तिलाफ़ अपने से
तू ने किस घड़ी ज़ालिम मेरी हम-नवाई की
तर्क कर चुके क़ासिद कू-ए-ना-मुरादाँ को
कौन अब ख़बर लावे शहर-ए-आश्नाई की
तंज़ ओ ता'ना ओ तोहमत सब हुनर हैं नासेह के
आप से कोई पूछे हम ने क्या बुराई की
फिर क़फ़स में शोर उट्ठा क़ैदियों का और सय्याद
देखना उड़ा देगा फिर ख़बर रिहाई की
दुख हुआ जब उस दर पर कल 'फ़राज़' को देखा
लाख ऐब थे उस में ख़ू न थी गदाई की