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मिल भी जाता जो कहीं आब-ए-बक़ा क्या करते

(कवि : TANVEER AHMAD ALVI)
मिल भी जाता जो कहीं आब-ए-बक़ा क्या करते
ज़िंदगी ख़ुद भी थी जीने की सज़ा क्या करते

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