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मुंसिफ़ चोर भी हो सकता है

(कवि : आकाश 'अर्श')
मुंसिफ़ चोर भी हो सकता है
उल्टा शोर भी हो सकता है

बात भी टाली जा सकती है
बात पे ग़ौर भी हो सकता है

दुख की आँख में आँख तो डालो
दुख कमज़ोर भी हो सकता है

मैं जो हिम्मत कर सकता हूँ
तो कुछ और भी हो सकता है

'ज़फ़र' ये जज़्बे मर जाएँ तो
सीना गोर भी हो सकता है

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