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ऑनलाइन आशिक़

(कवि : खालिद इरफ़ान)
नेट ईजाद हुआ हिज्र के मारों के लिए
सर्च इंजन है बड़ी चीज़ कुँवारों के लिए

जिस को सदमा शब-ए-तन्हाई के अय्याम का है
ऐसे आशिक़ के लिए नेट बहुत काम का है

नेट फ़रहाद को शीरीं से मिला देता है
इश्क़ इंसान को गूगल पे बिठा देता है

काम मक्तूब का माउस से लिया जाता है
आह-ए-सोज़ाँ को भी अपलोड किया जाता है

टेक्स्ट में लोग मोहब्बत की ख़ता भेजते हैं
घर बताते नहीं ऑफ़िस का पता भेजते हैं

आशिक़ों का ये नया तौर नया टाइप है
पहले चिलमन हुआ करती थी अब इस्काइप है

इश्क़ कहते हैं जिसे इक नया समझौता है
पहले दिल मिलते थे अब नाम क्लिक होता है

दिल का पैग़ाम जब ईमेल से मिल जाता है
मेल हर चौक पे फ़ीमेल से मिल जाता है

इश्क़ का नाम फ़क़त आह-ओ-फ़ुग़ाँ था पहले
डाक-ख़ाने में ये आराम कहाँ था पहले

आई-डी जब से मिली है मुझे हम-साई की
अच्छी लगती है तवालत शब-ए-तन्हाई की

नेट पे लोग जो नव्वे से पलस होते हैं
बैठे रहते हैं वो टस होते हैं न मस होते हैं

फेसबुक कूचा-ए-जानाँ से है मिलती-जुलती
हर हसीना यहाँ मिल जाएगी हिलती-जुलती

ये मोबाइल किसी आशिक़ ने बनाया होगा
उस को महबूब के अब्बा ने सताया होगा

टेक्स्ट जब आशिक़-ए-बर्क़ी का अटक जाता है
तालिब-ए-शौक़ तो सूली पे लटक जाता है

ऑनलाइन तिरे आशिक़ का यही तौर सही
तू नहीं और सही और नहीं और सही

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