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पूरा दुख और आधा चाँद

(कवि : परवीन शाकिर)
पूरा दुख और आधा चाँद
हिज्र की शब और ऐसा चाँद

दिन में वहशत बहल गई
रात हुई और निकला चाँद

किस मक़्तल से गुज़रा होगा
इतना सहमा सहमा चाँद

यादों की आबाद गली में
घूम रहा है तन्हा चाँद

मेरी करवट पर जाग उठ्ठे
नींद का कितना कच्चा चाँद

मेरे मुँह को किस हैरत से
देख रहा है भोला चाँद

इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद

आँसू रोके नूर नहाए
दिल दरिया तन सहरा चाँद

इतने रौशन चेहरे पर भी
सूरज का है साया चाँद

जब पानी में चेहरा देखा
तू ने किस को सोचा चाँद

बरगद की इक शाख़ हटा कर
जाने किस को झाँका चाँद

बादल के रेशम झूले में
भोर समय तक सोया चाँद

रात के शाने पर सर रक्खे
देख रहा है सपना चाँद

सूखे पत्तों के झुरमुट पर
शबनम थी या नन्हा चाँद

हाथ हिला कर रुख़्सत होगा
उस की सूरत हिज्र का चाँद

सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क़ में सच्चा चाँद

रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद

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हुई इक ख़्वाब से शादी मिरी तन्हाई की हुई इक ख़्वाब से शादी मिरी तन्हाई की
पहली बेटी है उदासी मिरी तन्हाई की
अभी मा'लूम नहीं कितने हैं ज़ाती अस्बाब
कितनी वजहें हैं समाजी मिरी तन्हाई की
जा के देखा तो खुला रौनक़-ए-बाज़ार का राज़
एक इक चीज़ बनी थी मिरी तन्हाई की
शहर-दर-शहर जो ये अंजुमनें हैं आबाद
तर्बियत-गाहें हैं सारी मिरी तन्हाई की
सिर्फ़ आईना-ए-आग़ोश-ए-मोहब्बत में मिली
एक तन्हाई जवाबी मिरी तन्हाई की
साफ़ है चेहरा-ए-क़ातिल मिरी आँखों में मगर
मो'तबर कब है गवाही मिरी तन्हाई की
हासिल-ए-वस्ल सिफ़र हिज्र का हासिल भी सिफ़र
जाने कैसी है रियाज़ी मिरी तन्हाई की
किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती
है यही एक ख़राबी मिरी तन्हाई की
मैं जो यूँ फिरता हूँ मय-ख़ानों में बुतख़ानों में
है यही रोज़ा नमाज़ी मिरी तन्हाई की
'फ़रहत-एहसास' वो हम-ज़ाद है मेरा जिस ने
शहर में धूम मचा दी मिरी तन्हाई की
पूरा दुख और आधा चाँद पूरा दुख और आधा चाँद
हिज्र की शब और ऐसा चाँद
दिन में वहशत बहल गई
रात हुई और निकला चाँद
किस मक़्तल से गुज़रा होगा
इतना सहमा सहमा चाँद
यादों की आबाद गली में
घूम रहा है तन्हा चाँद
मेरी करवट पर जाग उठ्ठे
नींद का कितना कच्चा चाँद
मेरे मुँह को किस हैरत से
देख रहा है भोला चाँद
इतने घने बादल के पीछे
कितना तन्हा होगा चाँद
आँसू रोके नूर नहाए
दिल दरिया तन सहरा चाँद
इतने रौशन चेहरे पर भी
सूरज का है साया चाँद
जब पानी में चेहरा देखा
तू ने किस को सोचा चाँद
बरगद की इक शाख़ हटा कर
जाने किस को झाँका चाँद
बादल के रेशम झूले में
भोर समय तक सोया चाँद
रात के शाने पर सर रक्खे
देख रहा है सपना चाँद
सूखे पत्तों के झुरमुट पर
शबनम थी या नन्हा चाँद
हाथ हिला कर रुख़्सत होगा
उस की सूरत हिज्र का चाँद
सहरा सहरा भटक रहा है
अपने इश्क़ में सच्चा चाँद
रात के शायद एक बजे हैं
सोता होगा मेरा चाँद