रात आई है बलाओं से रिहाई देगी
(कवि : अनवर मसूद)
रात आई है बलाओं से रिहाई देगी
अब न दीवार न ज़ंजीर दिखाई देगी
वक़्त गुज़रा है प मौसम नहीं बदला यारो
ऐसी गर्दिश है ज़मीं ख़ुद भी दुहाई देगी
ये धुँदलका सा जो है इस को ग़नीमत जानो
देखना फिर कोई सूरत न सुझाई देगी
दिल जो टूटेगा तो इक तरफ़ा चराग़ाँ होगा
कितने आईनों में वो शक्ल दिखाई देगी
साथ के घर में तिरा शोर बपा है 'अनवर'
कोई आएगा तो दस्तक न सुनाई देगी
अब न दीवार न ज़ंजीर दिखाई देगी
वक़्त गुज़रा है प मौसम नहीं बदला यारो
ऐसी गर्दिश है ज़मीं ख़ुद भी दुहाई देगी
ये धुँदलका सा जो है इस को ग़नीमत जानो
देखना फिर कोई सूरत न सुझाई देगी
दिल जो टूटेगा तो इक तरफ़ा चराग़ाँ होगा
कितने आईनों में वो शक्ल दिखाई देगी
साथ के घर में तिरा शोर बपा है 'अनवर'
कोई आएगा तो दस्तक न सुनाई देगी
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ऐ कातिब-ए-तक़दीर ये तक़दीर में लिख दे ऐ कातिब-ए-तक़दीर ये तक़दीर में लिख दे
बस उस की मोहब्बत मिरी जागीर में लिख दे
दे ऐसा जुनूँ जैसा दिया क़ैस को तू ने
मुझ को भी इसी हल्क़ा-ए-ज़ंजीर में लिख दे
पाने का उसे ख़्वाब जो देखा है हमेशा
वो ख़्वाब ही बस ख़्वाब की ताबीर में लिख दे
दिल ऐसा मकाँ है जो अगर टूट गया तो
लग जाएँगी सदियाँ नई तामीर में लिख दे
मिलना है अगर ख़ुद से तो फिर देर न करना
खो जाने का डर होता है ताख़ीर में लिख दे
सच्चाई मिरा जुर्म है और कार-ए-वफ़ा भी
मुंसिफ़ है तो ये भी मिरी ताज़ीर में लिख दे
लिख दे कि मैं 'ग़ालिब' का मुक़ल्लिद हूँ ग़ज़ल में
फिर नाम मिरा मो'तक़िद-ए-'मीर' में लिख दे
बस उस की मोहब्बत मिरी जागीर में लिख दे
दे ऐसा जुनूँ जैसा दिया क़ैस को तू ने
मुझ को भी इसी हल्क़ा-ए-ज़ंजीर में लिख दे
पाने का उसे ख़्वाब जो देखा है हमेशा
वो ख़्वाब ही बस ख़्वाब की ताबीर में लिख दे
दिल ऐसा मकाँ है जो अगर टूट गया तो
लग जाएँगी सदियाँ नई तामीर में लिख दे
मिलना है अगर ख़ुद से तो फिर देर न करना
खो जाने का डर होता है ताख़ीर में लिख दे
सच्चाई मिरा जुर्म है और कार-ए-वफ़ा भी
मुंसिफ़ है तो ये भी मिरी ताज़ीर में लिख दे
लिख दे कि मैं 'ग़ालिब' का मुक़ल्लिद हूँ ग़ज़ल में
फिर नाम मिरा मो'तक़िद-ए-'मीर' में लिख दे
चल मान लिया साहब-ए-किरदार नहीं हूँ चल मान लिया साहब-ए-किरदार नहीं हूँ
पर तेरी तरह हाज़िर-ए-दरबार नहीं हूँ
दुश्मन है मुसाफ़िर तो उसे साफ़ बता दो
दीवार हूँ मैं साया-ए-दीवार नहीं हूँ
अतराफ़ में हर चीज़ का इदराक है मुझ को
ख़्वाबों में घिरा दीदा-ए-बेदार नहीं हूँ
ख़ामोश ही रहना है मिरे वास्ते बेहतर
मैं आप का पैराया-ए-इज़हार नहीं हूँ
अब तो हदफ़-ए-संग-ए-मलामत न बनाओ
अब तो मैं सर-ए-कूचा-ए-दिलदार नहीं हूँ
दिल तोड़ने वाले को ख़बर हो कि अभी मैं
सर-ता-ब-क़दम इक दिल-ए-बीमार नहीं हूँ
पर तेरी तरह हाज़िर-ए-दरबार नहीं हूँ
दुश्मन है मुसाफ़िर तो उसे साफ़ बता दो
दीवार हूँ मैं साया-ए-दीवार नहीं हूँ
अतराफ़ में हर चीज़ का इदराक है मुझ को
ख़्वाबों में घिरा दीदा-ए-बेदार नहीं हूँ
ख़ामोश ही रहना है मिरे वास्ते बेहतर
मैं आप का पैराया-ए-इज़हार नहीं हूँ
अब तो हदफ़-ए-संग-ए-मलामत न बनाओ
अब तो मैं सर-ए-कूचा-ए-दिलदार नहीं हूँ
दिल तोड़ने वाले को ख़बर हो कि अभी मैं
सर-ता-ब-क़दम इक दिल-ए-बीमार नहीं हूँ
गो ज़रा तेज़ शुआएँ थीं ज़रा मंद थे हम गो ज़रा तेज़ शुआएँ थीं ज़रा मंद थे हम
तू ने देखा ही नहीं ग़ौर से हर चंद थे हम
हम जो टूटे हैं बता हार भला किस की हुई
ज़िंदगी तेरी उठाई हुई सौगंद थे हम
और बीमार हुए जाते हैं ख़ामोशी से
एक आज़ार-ए-सुख़न था तो तनोमंद थे हम
तेरे ख़त देख के अक्सर ये ख़याल आता रहा
रेशमीं रेशमीं तहरीर पे पैवंद थे हम
ये गया साल भी गुज़रा है तो यूँ गुज़रा है
दस्तकें थक के सभी लौट गईं बंद थे हम
तू ने देखा ही नहीं ग़ौर से हर चंद थे हम
हम जो टूटे हैं बता हार भला किस की हुई
ज़िंदगी तेरी उठाई हुई सौगंद थे हम
और बीमार हुए जाते हैं ख़ामोशी से
एक आज़ार-ए-सुख़न था तो तनोमंद थे हम
तेरे ख़त देख के अक्सर ये ख़याल आता रहा
रेशमीं रेशमीं तहरीर पे पैवंद थे हम
ये गया साल भी गुज़रा है तो यूँ गुज़रा है
दस्तकें थक के सभी लौट गईं बंद थे हम
दर्द आ के बढ़ा दो दिल का तुम ये काम तुम्हें क्या मुश्किल है दर्द आ के बढ़ा दो दिल का तुम ये काम तुम्हें क्या मुश्किल है
बीमार बनाना आसाँ है हर-चंद मुदावा मुश्किल है
इल्ज़ाम न देंगे हम तुम को तस्कीन में कोई की न कमी
वादा तो वफ़ा का तुम ने किया क्या कीजिए ईफ़ा मुश्किल है
दिल तोड़ दिया तुम ने मेरा अब जोड़ चुके तुम टूटे को
वो काम निहायत आसाँ था ये काम बला का मुश्किल है
आग़ाज़ से ज़ाहिर होता है अंजाम जो होने वाला है
अंदाज़-ए-ज़माना कहता है पूरी हो तमन्ना मुश्किल है
मौक़ूफ़ करो अब फ़िक्र-ए-सुख़न 'वहशत' न करो अब ज़िक्र-ए-सुख़न
जो काम कि बे-हासिल ठहरा दिल उस में लगाना मुश्किल है
बीमार बनाना आसाँ है हर-चंद मुदावा मुश्किल है
इल्ज़ाम न देंगे हम तुम को तस्कीन में कोई की न कमी
वादा तो वफ़ा का तुम ने किया क्या कीजिए ईफ़ा मुश्किल है
दिल तोड़ दिया तुम ने मेरा अब जोड़ चुके तुम टूटे को
वो काम निहायत आसाँ था ये काम बला का मुश्किल है
आग़ाज़ से ज़ाहिर होता है अंजाम जो होने वाला है
अंदाज़-ए-ज़माना कहता है पूरी हो तमन्ना मुश्किल है
मौक़ूफ़ करो अब फ़िक्र-ए-सुख़न 'वहशत' न करो अब ज़िक्र-ए-सुख़न
जो काम कि बे-हासिल ठहरा दिल उस में लगाना मुश्किल है
रात आई है बलाओं से रिहाई देगी रात आई है बलाओं से रिहाई देगी
अब न दीवार न ज़ंजीर दिखाई देगी
वक़्त गुज़रा है प मौसम नहीं बदला यारो
ऐसी गर्दिश है ज़मीं ख़ुद भी दुहाई देगी
ये धुँदलका सा जो है इस को ग़नीमत जानो
देखना फिर कोई सूरत न सुझाई देगी
दिल जो टूटेगा तो इक तरफ़ा चराग़ाँ होगा
कितने आईनों में वो शक्ल दिखाई देगी
साथ के घर में तिरा शोर बपा है 'अनवर'
कोई आएगा तो दस्तक न सुनाई देगी
अब न दीवार न ज़ंजीर दिखाई देगी
वक़्त गुज़रा है प मौसम नहीं बदला यारो
ऐसी गर्दिश है ज़मीं ख़ुद भी दुहाई देगी
ये धुँदलका सा जो है इस को ग़नीमत जानो
देखना फिर कोई सूरत न सुझाई देगी
दिल जो टूटेगा तो इक तरफ़ा चराग़ाँ होगा
कितने आईनों में वो शक्ल दिखाई देगी
साथ के घर में तिरा शोर बपा है 'अनवर'
कोई आएगा तो दस्तक न सुनाई देगी
तुझे है मश्क़-ए-सितम का मलाल वैसे ही तुझे है मश्क़-ए-सितम का मलाल वैसे ही
हमारी जान थी जाँ पर वबाल वैसे ही
चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का
सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही
हम आ गए हैं तह-ए-दाम तो नसीब अपना
वगरना उस ने तो फेंका था जाल वैसे ही
मैं रोकना ही नहीं चाहता था वार उस का
गिरी नहीं मिरे हाथों से ढाल वैसे ही
ज़माना हम से भला दुश्मनी तो क्या रखता
सो कर गया है हमें पाएमाल वैसे ही
मुझे भी शौक़ न था दास्ताँ सुनाने का
'फ़राज़' उस ने भी पूछा था हाल वैसे ही
हमारी जान थी जाँ पर वबाल वैसे ही
चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई का
सो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही
हम आ गए हैं तह-ए-दाम तो नसीब अपना
वगरना उस ने तो फेंका था जाल वैसे ही
मैं रोकना ही नहीं चाहता था वार उस का
गिरी नहीं मिरे हाथों से ढाल वैसे ही
ज़माना हम से भला दुश्मनी तो क्या रखता
सो कर गया है हमें पाएमाल वैसे ही
मुझे भी शौक़ न था दास्ताँ सुनाने का
'फ़राज़' उस ने भी पूछा था हाल वैसे ही