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सर-ए-फ़िराक़ भी तर्क-ए-अना नहीं होती

(कवि : बालमोहन पांडेय)
सर-ए-फ़िराक़ भी तर्क-ए-अना नहीं होती
कि टूट जाती है दीवार वा नहीं होती

मेरे अलावा उसे ख़ुद से भी मोहब्बत है
और ऐसा करने से वो बेवफ़ा नहीं होती

जब अपने लोग मिरे तब हमें समझ आया
कि मौत सारे दुखों की दवा नहीं होती

ज़ियादा सोचने से बचना चाहिए 'मोहन'
ख़याली ज़ख़्मों की कोई दवा नहीं होती

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