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सर-ए-राहे कभी-कभार सही

(कवि : ए जी जोश)
सर-ए-राहे कभी-कभार सही
रस-भरी इक निगाह-ए-यार सही

हम तो ज़िंदा हैं तेरे वा'दों पर
तू नहीं तेरा इंतिज़ार सही

हम लगा देंगे इश्क़ की बाज़ी
न मिले जीत अपनी हार सही

हम को है एक सोहनी की तलाश
पस-ए-तूफ़ाँ चनाब पार सही

अपना मंसब निभा कि तू है ख़ुदा
हम हैं बंदे गुनाहगार सही

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