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शा'इर के क़त्ल पर

(कवि : अनुवाद: बलराज कोमल)
एक लरज़ता पानी था
वो मर कर पत्थर हो गया
दूसरा इस हादसे से
डर कर पत्थर हो गया
तीसरा इस हादसे को
करने लगा था बयान
वो किसी पत्थर के घूरने से
पत्थर हो गया
एक शजर बीज रहा
एहसास से मुतहर्रिक
इतने पत्थर
वो गिनती कर के
पत्थर हो गया

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