तकलीफ़ मिट गई मगर एहसास रह गया
(कवि : अब्दुल हमीद अदम)
तकलीफ़ मिट गई मगर एहसास रह गया
ख़ुश हूँ कि कुछ न कुछ तो मिरे पास रह गया
पल-भर में उस की शक्ल न आई अगर नज़र
यक-दम उलझ के रिश्ता-ए-अन्फ़ास रह गया
फोटो में दिल की चोट न तब्दील हो सकी
नक़लें उतार उतार के अक्कास रह गया
वो झूटे मोतियों की चमक पर फिसल गई
मैं हाथ में लिए हुए अल्मास रह गया
इक हम-सफ़र को खो के ये हालत हुई 'अदम'
जंगल में जिस तरह कोई बे-आस रह गया