वो हम सफर था मगर इस से हम नवाई नहीं थी
(कवि : )
वो हम सफर था मगर इस से हम नवाई नहीं थी
के धूप चां का आलम रहा जुदाई नहीं थी
न अपना रंज नहीं औरों का दुख नहीं तेरा माला
शब फराक कभी हम ने यूं गवई नहीं थी
मोहब्बतों का सफर इस तेरहान भी गुजर था
शकीस्ता दिल था मुसाफिर शकीस्ता पाई नहीं थी
अदावतीं थीन, तगफुल था, रंजीशन थेन बोहत
बिचेरने वाले में सब कुछ था, बे वफाई नहीं थी
बिचरते वक्त उन आंखों में थी हमारी ग़ज़ाली
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुना नहीं थी
किस पुकार रहा था वो दोब्ता सुन-हवा दिन
सदा से आई थी लेकिन कोई दहाई नहीं थी
कभी ये हाल के दोनो में याक दिल्ली थी बोहाटी
कभी ये मरहला जैसा के आशनी नहीं थी
अजीब होती है राह सुखन भी देख नसीर
वहन भी आ गई आखिर, जहां रसाई नहीं थी