ज़िन्दगी से याही गिला है मुजे
(कवि : Ahmad Faraz)
ज़िन्दगी से याही गिला है मुजे
तू बोहत डर से मिला है मुजे
तू मोहब्बत से कोई चाय चले
हर जेन का होसला है मुजे
दिल धडकटता नहीं टपकता है
कल जो ख्वाहिश थी आबला है मुझसे
हमसफ़र चहिये हजूम नहीं
इक मुसाफिर भी काफला है मुजे
कोह किन हो क्या हो फ़राज़
सब मीन इक शक्स ही मिला है मुजे
तू बोहत डर से मिला है मुजे
तू मोहब्बत से कोई चाय चले
हर जेन का होसला है मुजे
दिल धडकटता नहीं टपकता है
कल जो ख्वाहिश थी आबला है मुझसे
हमसफ़र चहिये हजूम नहीं
इक मुसाफिर भी काफला है मुजे
कोह किन हो क्या हो फ़राज़
सब मीन इक शक्स ही मिला है मुजे
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निय्यत-ए-शौक़ भर न जाए कहीं निय्यत-ए-शौक़ भर न जाए कहीं
तू भी दिल से उतर न जाए कहीं
आज देखा है तुझ को देर के ब'अद
आज का दिन गुज़र न जाए कहीं
न मिला कर उदास लोगों से
हुस्न तेरा बिखर न जाए कहीं
आरज़ू है कि तू यहाँ आए
और फिर उम्र भर न जाए कहीं
जी जलाता हूँ और सोचता हूँ
राएगाँ ये हुनर न जाए कहीं
आओ कुछ देर रो ही लें 'नासिर'
फिर ये दरिया उतर न जाए कहीं
तू भी दिल से उतर न जाए कहीं
आज देखा है तुझ को देर के ब'अद
आज का दिन गुज़र न जाए कहीं
न मिला कर उदास लोगों से
हुस्न तेरा बिखर न जाए कहीं
आरज़ू है कि तू यहाँ आए
और फिर उम्र भर न जाए कहीं
जी जलाता हूँ और सोचता हूँ
राएगाँ ये हुनर न जाए कहीं
आओ कुछ देर रो ही लें 'नासिर'
फिर ये दरिया उतर न जाए कहीं
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
उन से नज़रें क्या मिलीं रौशन फ़ज़ाएँ हो गईं
आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है
बिखरी ज़ुल्फ़ों ने सिखाई मौसमों को शाइ'री
झुकती आँखों ने बताया मय-कशी क्या चीज़ है
हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
उन से नज़रें क्या मिलीं रौशन फ़ज़ाएँ हो गईं
आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है
बिखरी ज़ुल्फ़ों ने सिखाई मौसमों को शाइ'री
झुकती आँखों ने बताया मय-कशी क्या चीज़ है
हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है