ज़िन्दगी से याही गिला है मुजे
तू बोहत डर से मिला है मुजे
तू मोहब्बत से कोई चाय चले
हर जेन का होसला है मुजे
दिल धडकटता नहीं टपकता है
कल जो ख्वाहिश थी आबला है मुझसे
हमसफ़र चहिये हजूम नहीं
इक मुसाफिर भी काफला है मुजे
कोह किन हो क्या हो फ़राज़
सब मीन इक शक्स ही मिला है मुजे
(कवि : Ahmad Faraz)