ज़िंदगी से एक दिन मौसम ख़फ़ा हो जाएँगे
(कवि : अहमद मुश्ताक़)
ज़िंदगी से एक दिन मौसम ख़फ़ा हो जाएँगे
रंग-ए-गुल और बू-ए-गुल दोनों हवा हो जाएँगे
आँख से आँसू निकल जाएँगे और टहनी से फूल
वक़्त बदलेगा तो सब क़ैदी रिहा हो जाएँगे
फूल से ख़ुश्बू बिछड़ जाएगी सूरज से किरन
साल से दिन वक़्त से लम्हे जुदा हो जाएँगे
कितने पुर-उम्मीद कितने ख़ूबसूरत हैं ये लोग
क्या ये सब बाज़ू ये सब चेहरे फ़ना हो जाएँगे