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ज़िंदगी शम्अ की मानिंद जलाता हूँ 'नदीम'

(कवि : AHMAD NADEEM QASMI)
ज़िंदगी शम्अ की मानिंद जलाता हूँ 'नदीम'
बुझ तो जाऊँगा मगर सुबह तो कर जाऊँगा

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