जब कभी ज़िक्र यार का आया
(कवि : ए जी जोश)
जब कभी ज़िक्र यार का आया
एक झोंका बहार का आया
इश्क़ कच्चे घड़े पे डूब गया
लम्हा जब इंतिज़ार का आया
आ गए दिल में वसवसे कितने
वक़्त जब ए'तिबार का आया
पास तीर-ओ-कमाँ न थे अपने
जब भी मौसम शिकार का आया
हम ने ठुकरा दिया जहाँ को 'जोश'
मरहला जब वक़ार का आया