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वो कच्ची उमर के प्यार भी

(कवि : यासरा रिज़वी)
वो कच्ची उमर के प्यार भी
हैं तीर भी, तलवार भी
ताजा हैं दिल पे वार भी
और खूबसूरत यादगर भी
घर जाये वही
ऐसी भी कोई रात हो
सर सफ़ैद हो गया
लगता है कल की बात हो
ये कच्ची उमर के प्यार भी
बैरे पके निशान देते हैं
आज पे कम ध्यान देते हैं
बहके बहके बयान देते हैं
उन को देखे हुए मुद्दत हुई
और हम अब भी जान देते हैं

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