Add Poetry

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ

Poet: अल्लामा इक़बाल By: Jamshed, Jacobabad

तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

सितम हो कि हो वादा-ए-बे-हिजाबी
कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ

ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ

ज़रा सा तो दिल हूँ मगर शोख़ इतना
वही लन-तरानी सुना चाहता हूँ

कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चराग़-ए-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ

भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ

Rate it:
Views: 268
11 Sep, 2023
More Hindi Poetry
Popular Poetries
View More Poetries
Famous Poets
View More Poets